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ईएसआई अस्पताल में हाल बेहाल: पैसे लग रहे पर नहीं मिल रहा इलाज, हफ्तेभर के लिए कुछ दवाइयां बचीं… मायूस होकर लौट रहे मरीज

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-एमएस को मरीजों की नहीं परवाह, ना दवाइयां है ना डॉक्टर, वार्ड में गंदे बाथरूमऔर टूटे गेट, सर्दी में खिड़कियों के टूटे कांचों से आ रही हवा से कांप रहे मरीज

-सरकारी आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी पर ताला, बच्चों के माहिर कोर्ट में व्यस्त, ईएनटी तो भूल जाएं और गायनी स्पेशलिस्ट हफ्ते में सिर्फ तीन दिन ड्यूटी पर, कहां जाएं मरीज

जालंधर। पैसे देकर भी इलाज के लिए मोहताज होना सुनने में थोड़ा अजीब लगता है पर जालंधर के ईएसआई अस्पताल में ऐसा हो रहा है। मरीजों के पैसे तो कट रहे हैं पर ना उन्हें डॉक्टर मिल रहे हैं और ना दवाइयां नसीब हो रही हैं क्योंकि सितंबर महीने के बाद से दवाइयां का स्टॉक आया ही नहीं। ईएसआई के जिलेभर में चल रही डिस्पेंसरियों का भी यही हाल है और अस्पताल का भी, जहां डॉक्टर भी नहीं है और दवाइयां भी। वहीं अस्पताल में वार्ड में भर्ती मरीजों को भी सहूलतें नहीं मिल रहीं है। बुधवार को जब अमर उजाला की टीम ने ईएसआई अस्पताल का जायजा लिया और मरीजों से बात की तो कई खुलासे हुए। वार्ड में भर्ती मरीजों ने कहा कि बाथरूम गंदे हैं और गेट टूटे होने के कारण टायलेट जाने में शर्मिंदगी महसूस होती है पर अस्पताल प्रबंधन को किसी की नहीं पड़ी। रात में खिड़कियों के टूटे हुए शीशों के ठंडी हवा अंदर आती है जिससे शरीर कांप उठता है तो लगता है कि हम यहां इलाज कराने आए हैं या बीमार होने।

ईएसआई की ओपीडी में मरीजों का हाल वार्ड के मरीजों से अलग नहीं है। ओपीडी में मरीजों को ना डॉक्टर मिल रहे हैं और ना डिस्पेंसरी में दवाइयां। सरकारी आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी पर ताला जड़ा हुआ है, काम के समय में बच्चों को रोगों के माहिर डॉक्टर राजकुमार कोर्ट में घूम रहे हैं, गायनी स्पेशलिस्ट हफ्ते में सिर्फ तीन दिन ही ड्यूूटी पर होती हैं और ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ सनाह महाजन को तो भूल ही जाएं। ईएसआई में मेडिकल को छोड़कर सभी विभाग में सिर्फ एक-एक डॉक्टर ही है अगर वह भी छुट्टी पर तो इलाज को भूल जाएं। फार्मेसी अफसर नवीन ने बताया कि शुगर, बीपी, कैल्शियम और सीजनल बीमारियों की दवाइयों का स्टॉक खत्म हो चुका था तो कपूरथला ईएसआई से दवाइयां लेकर काम चला रहे हैं हफ्तेभर बाद ईएसआई में दवाइयों के लाले पड़ने वाले हैं।
साइनस का इलाज कराने पहुंचे मरीज मनमोहन ने कहा कि जब ईएनटी डॉक्टर ही नहीं है तो इलाज कैसा और ओपीडी में बैठी डॉक्टर ने पर्ची पर लिखते हुए कहा सिविल अस्पताल में दिखा लें। जबकि हम सुबह से इलाज के लिए लाइन में लगे और पर्ची बनवाई जब नंबर आया तो सिर्फ निराशा हाथ लगी।

बच्चे ह्रदयांश की खांसी और जुकाम का इलाज कराने पहुंची आरती ने कहा कि बच्चों के रोगों के माहिर को दिखाने के लिए डिस्पेंसरी से रेफर तो कर दिया पर ओपीडी में डॉक्टर ही नहीं थे, स्टाफ को पता नहीं कहां हैं बाद में पता चला वह तो कोर्ट में घूम रहे हैं मरीजों की उन्हें कोई परवाह नहीं।
बुजुर्ग शाम कली घुटनों के दर्द और सदी-जुकाम के इलाज के लिए आई थी। उन्होंने कहा कि गोलियां खा-खाकर परेशान हो गई हूं तो सोचा आयुर्वेदिक को दिखा लूं पर यहां तो ताला जड़ा हुआ है। मैं बिना दवाई लिए मायूस वापिल लौट रहीं हूं यहां कोई किसी की नहीं सुनता, डॉक्टर एक-दूसरे के रूम में बैठकर ठहाके लगाते हैं पर बुलाने जाओ तो गुस्सा दिखाते हुए जवाब देते हैं चलो आ रहे हैं।

-फोन पर एक्स-रे देखते हैं डॉक्टर, मरीजों की संतुष्टि जरूरी नहीं, बाहर दिखाना हो तो क्या दिखाएंगे मरीज
ईएसआई में इलाज कराने पहुंचे मरीजों ने कहा कि हमारे पैसे लग रहे हैं और जब स्टाफ से एक्स-रे मांगों तो बोलते हैं डॉक्टर के फोन पर भेज दिया वो देख लेंगे। अगर हमें कहीं बाहर दिखाना हो तो हम क्या दिखाएंगे, यहां मरीजों की संतुष्टि के लिए नहीं बल्कि प्रबंधन डॉक्टरों और स्टाफ के हित में काम करता है। डॉक्टर फोन पर एक्स-रे देख कर दवाइयां लिख देते हैं पर जिससे संतुष्टि नहीं मिलती।

-डॉक्टर्स काम कर रहे हैं, परेशानियां हर जगह होती हैं तो क्यां करें, तो दवाइयां को लिए कई बार लिख चुके

हम डॉक्टर्स काम रहे हैं कुछ को काम आ जाता है तो छुट्टी कर लेते हैं तो उसमें क्या, परेशानियां तो हर जगह होती हैं। डॉ राजकुमार कोर्ट में होते हैं तो उनकी जगह मैं मरीज देख लेती हूं पर डायरेक्टर हेल्थ (ईएसआई) न होने से दवाइयां का स्टॉक नहीं आ पा रहा इसलिए दवाइयां खत्म हो रही हैं। डायरेक्टर का पद खाली होने से दवाइयां नहीं खरीदी गई। सेक्रेटरी हेल्थ से भी मिले थे पर बात नहीं बनी, उन्हें भी दवाइयों की लिस्ट सौंपी थी। अगर सेहत मंत्री अस्पताल आते तो उन्हें दिखाते कि यहां क्या कमियां हैं और ईएसआई में तो इमरजैंसी फंड भी नहीं होता कि कुछ खरीद कर लें।
-डॉ जसमिंदर अत्री, मेडिकल सुपरिटेंडेंट कम डिप्टी डायरेक्टर, ईएसआई अस्पताल जालंधर

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