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Punjab Breaking : नहीं होगा BJP-SAD का अलाइंस, ये रही वजहें…. पढ़ें क्या बोले प्रधान जाखड़

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पंजाब/चंडीगढ़/नई दिल्ली। पंजाब में BJP-SAD का अलाइंस नहीं होगा जिसकी आधिकारिक घोषणा मंगलवार को पंजाब भाजपा प्रधान सुनील जाखड़ ने की। प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा कि लोगों की राय के बाद यह फैसला लिया गया है कि लोकसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ेंगे। वर्करों और नेताओं की भी यही राय है। पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं।पंजाब के भविष्य, जवानी-किसानी और व्यापारियों एवं पिछड़े वर्ग की बेहतरी के लिए यह फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि पिछले 10 साल में किसानों की फसल का एक-एक दाना उठाया गया है। करतारपुर कॉरिडोर की सदियों की मांग पीएम मोदी ने पूरी की।

BJP-SAD गठबंधन के पक्ष में थे कई बड़े नेता

बता दें कि पहले पंजाब में अकाली दल से भाजपा के दोबारा गठजोड़ की चर्चा थी। भाजपा के सीनियर नेता भी इसके पक्ष में थे। इसके बावजूद यह बातचीत बन नहीं पाई। 2020 में तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए किसानों ने आंदोलन शुरू किया था। केंद्र में अकाली दल व भाजपा में गठजोड़ के कारण किसानों का गुस्सा स्थानीय नेताओं पर निकल रहा था। किसानों ने भाजपा नेताओं के साथ-साथ अकाली दल का बायकॉट भी करना शुरू कर दिया था। इस बीच 18 सितंबर 2020 को बादल परिवार की बहू हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद अकाली दल ने भाजपा से अलग होने की घोषणा कर दी थी।

अकाली दल व भाजपा का रिश्ता काफी पुराना है। NDA के विस्तार में अकाली दल पहला संगठन था, जिसने भाजपा के साथ हाथ मिलाया था। 1992 तक BJP और अकाली दल अलग-अलग चुनाव लड़ते थे। चुनावों के बाद अकाली दल BJP को समर्थन देती थी। 1996 में अकाली दल ने ‘मोगा डेक्लरेशन’ पर साइन किया था और 1997 में पहली बार एक साथ साथ में चुनाव लड़ा। मोगा डेक्लरेशन में BJP के साथ तीन बातों पर जोर दिया गया था। जिसमें पहली पंजाबी आईडेंटिटी थी, दूसरा आपसी सौहार्द्र और तीसरा राष्ट्रीय सुरक्षा। 1984 के दंगों के बाद देश में पैदा हुए माहौल के कारण दोनों पार्टियां साथ आई थीं।2012 में अकाली दल-भाजपा ने लगातार दूसरी बार पंजाब में सरकार बनाई थी। प्रकाश सिंह बादल ने खुद कमान संभाली और एक बार फिर पंजाब के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनके बेटे सुखबीर बादल ने खुद को हर काम में आगे रखा। इसके बाद से ही अकाली दल व भाजपा के क्षेत्रीय नेताओं में दूरियां बननी शुरू हो गई थी।

अकाली दल हर बार खुद को आगे रखने लगा तो क्षेत्रीय नेता इससे नाराज रहने लगे। 2014 में लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई। अकाली दल व भाजपा के बीच बड़े नेताओं की नाराजगी का असर दिखा। पंजाब में अकाली दल को सत्ता में रहते हुए भी नुकसान हुआ। 2009 के परिणामों में 8 सीटें थी, जो 2014 में 4 पर सिमट गईं। भाजपा भी 3 से 2 पर आ गई थी। भाजपा नेता सरेआम अकाली दल से गठजोड़ तोड़ने की मांग करने लगे थे।

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