Delhi Chief Minister Face: दावेदारी नहीं पर कई दावेदार! अब सबकी नजरें दिल्ली के सीएम फेस पर… सब कुछ कयासों में, पढ़ें
27 साल बाद सत्ता में वापसी, तब 5 साल में बनाए थे 3 मुख्यमंत्री… इस बार भी ऐसे ही समीकरण; डिप्टी CM पद के नाम पर भी चर्चा!
पंजाब हॉटमेल, नई दिल्ली/चंडीगढ़। Delhi Chief Minister Face) दिल्ली की जनता ने 27 साल बाद फिर भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सत्ता में वापसी कराई है लेकिन CM फेस को लेकर संकट पुराना है। सभी की नजर मुख्यमंत्री के चेहरे पर है क्योंकि 27 साल पहले जब दिल्ली में भाजपा सरकार थी तब तीन दिग्गजों ने CM पद की कमान संभाली थी। इस बार भी बड़ा सवाल सबके सामने यही है कि दिल्ली का ताज किसके सिर पर सजेगा।

भाजपा महिला के हाथ में दिल्ली की कमान सौंपेंगी या फिर किसी अनुसूचित जाति, सिख, पूर्वांचली, जाट-गुर्जर समाज से आने वाले नेता को। राजनीतिक पंडित इस मामले में कई तरह से कयास लगा रहे हैं। भले ही CM पद को लेकर किसी ने दावेदारी नहीं जताई है पर दावेदार कई हैं। सबके अपने-अपने दावे हैं। हालांकि, दिल्ली प्रदेश भाजपा ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है तो दूसरी तरफ प्रभारी ने 10 दिन में मुख्यमंत्री के चेहरे का ऐलान करने की बात कही है।

दिल्ली का मुख्यमंत्री (CM) विधायक दल की बैठक से चुना जाएगा, इसे भाजपा की हाईकमान भी जानती है। पिछले 27 साल से दिल्ली में यह ट्रेंड देखने को मिला है कि नई दिल्ली विधानसभा सीट जीतता है, वही मुख्यमंत्री बनता है।
नई दिल्ली सीट जीतने पर सत्ता में आने और CM बनने का ट्रेंड, क्या BJP भी यही सोच पर कायम?
कांग्रेस के शासन काल में नई दिल्ली विधानसभा सीट से जीतने वाली शीला दीक्षित लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनीं। इसी सीट पर शीला दीक्षित को करारी शिकस्त देने के बाद अरविंद केजरीवाल भी तीन बार मुख्यमंत्री बने। यदि यह परंपरा कायम रहती है तो सबसे मजबूत दावेदारी प्रवेश वर्मा की है।
प्रवेश वर्मा आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक व पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को हरा कर विधानसभा पहुंचे है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के सुपुत्र भी हैं। जाट समुदाय से भी आते है। इनके चेहरे से दिल्ली ही नहीं यूपी, हरियाणा और राजस्थान में भी पार्टी को फायदा मिलेगा।
वहीं दिल्ली BJP अध्यक्ष वीरेंद्र पंजाबी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। पंजाबी मतदाता भी अधिक संख्या में है। इस प्रचंड जीत के पीछे उनकी भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता है। चुनाव भले ही नहीं लड़े लेकिन सभी विधानसभा में चुनाव लड़वाने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी। दूसरी तरफ माना जा रहा है कि दिल्ली का नेतृत्व एससी समाज को देकर भाजपा पूरे देश में सियासी मैसेज देने की कोशिश कर सकती है कि वह इस वर्ग की सबसे बड़ी हितैषी है। इससे संविधान बदलने के कांग्रेस के आरोप समेत दूसरे कई आरोपों को भाजपा एक तीर से भेद सकेगी।
PM के वादों पर नजर तो पूर्वांचली या सिख नेता भी बन सकता है CM!
अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों और रैलियों पर नजर डालें तो पूर्वांचलियों और पंजाबी समुदाय की तारीफ उन्होंने हर फ्रंट पर की है। चुनावी रणनीतिकार भी यही देख रहे है कि किसी पूर्वांचली को मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो इसका मैसेज बिहार तक जाएगा। वहां चुनाव भी है। यह भी देखा जा रहा है कि किसी सिख नेता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो इसका असर पंजाब पर भी पड़ेगा। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार भी है। ऐसे में पार्टी पर प्रहार करने के लिए और पंजाब से भी सत्ता छीनने में भाजपा को चुनावी लाभ मिल सकता है।

पार्टी डिप्टी सीएम का पद भी ऐसे वर्ग के प्रतिनिधि को सौंप सकती है जिससे एक तीर से दो निशाने लगाए जा सकें।हालांकि भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि वह किसी एक वर्ग को मुख्यमंत्री बनाती है तो अन्य वर्ग नाराज न हो जाए। ऐसे में पार्टी अन्य वर्ग के लोगों को उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी भी दे सकती है। भाजपा कई प्रदेशों में इस तरह का प्रयोग कर भी रही है।
इन सात नामों पर चल रहा मंथन, नया चेहरा भी संभव!
विजेंद्र गुप्ता (विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, रोहिणी से प्रत्याशी), रेखा गुप्ता (शालीमार बाग से प्रत्याशी), दुष्यंत गौतम (राष्ट्रीय महामंत्री और भाजपा के अनुसूचित जाति से संबंधित बड़े नेता, करोलबाग से प्रत्याशी) वीरेंद्र सचदेवा (दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष), प्रवेश वर्मा (पूर्व सांसद और नई दिल्ली से प्रत्याशी), मनोज तिवारी (सांसद और भाजपा का सबसे बड़ा पूर्वांचली चेहरा), आशीष सूद (जनकपुरी से प्रत्याशी)